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इंडिया का पीएम कौन

जागरण संपादकीय ब्ल
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बीते रविवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बड़ी मजेदार टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिक संस्थान लालफीताशाही, राजनीतिक दखलंदाजी और पक्षपात से त्रस्त हैं। प्रकटत: इसमें मजेदार कुछ भी नहीं दिखता, लेकिन इस तथ्य के बाद प्रधानमंत्री का यह कथन मजेदार भी नजर आने लगता है और विचित्र भी कि विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय वह खुद देखते हैं। क्या ऐसा नहीं लगता कि मनमोहन सिंह यह भूल जाते हैं कि इंडिया दैट इज भारत नामक देश के प्रधानमंत्री वह खुद हैं? जो कार्य उन्हें खुद करना चाहिए उसकी आवश्यकता जताने का काम वह इसलिए तो नहीं करते रहते, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री जनता ने नहीं, सोनिया गांधी ने बनाया है? या फिर इसलिए तो नहीं कि उन्हें यह भान नहीं रहता कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें किन जिम्मेदारियों का निर्वाह करना है?

मनमोहन सिंह जबसे दोबारा प्रधानमंत्री बने हैं तबसे कोई भी यह कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा कि वह अपनी कथनी-करनी से खुद को सक्षम प्रधानमंत्री नहीं साबित कर पा रहे। पहले भाजपा नेता जब-तब उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री बताते रहते थे, लेकिन आम चुनाव में उसके चारों खाने चित्त रहने के बाद कुछ ऐसा माहौल बना दिया गया कि भाजपा ने मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहने का जो पाप किया उसका ही फल भोग रही है। अब स्थिति यह है कि कोई भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना नहीं कर पा रहा। बावजूद इसके कि वह उन मुद्दों पर भी कुछ नहीं बोलते जो देश को उद्वेलित करते हैं। क्या किसी को पता है कि तेलंगाना अथवा रुचिका मामले में मनमोहन सिंह क्या सोचते हैं?


हालात कुछ कुछ वैसे ही नजर आते हैं जैसे उस राजा के समय रहे होंगे जो नग्न होकर नगर भ्रमण के लिए निकलता था, लेकिन खुद को अज्ञानी-मूर्ख करार दिए जाने के भय से कोई भी यह नहीं कह पाता था कि अरे देखो, राजा तो नंगा है। जिस तरह इस राजा के दरबारियों ने एक काल्पनिक वस्त्र पहनाकर उसे यह भरोसा दिला दिया था कि वह खूबसूरत वस्त्रों से सुसज्जित है उसी तरह मनमोहन सिंह के समर्थकों, हितैषियों और शुभचिंतकों ने यह समां बांध रखा है कि प्रधानमंत्री के रूप में उनकी काबिलियत का कोई जोड़ नहीं। ऐसा तब है जब वह किसी क्षेत्र में बुनियादी सुधार नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे शुभचिंतकों से निवेदन है कि वह मनमोहन सिंह को यह याद दिलाते रहें कि भारत का प्रधानमंत्री पद उन्हीं के पास है। शायद इससे कुछ बात बन जाए।

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