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सुधी पाठक

जागरण संपादकीय ब्ल
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अखबार वालों की आपसी चर्चा के दौरान सुधी पाठक का जिक्र अक्सर आता है, लेकिन शायद ही किसी ने सुधी पाठक को परिभाषित किया हो। मेरी समझ से सुधी पाठक अखबार की सही तरह सुधि लेते हैं और वह भी नि:स्वार्थ भाव से। वे छपास रोग से अछूते होते हैं। वैसे तो जैसे सुधी पाठक होते हैं वैसे ही जागरूक पाठक भी, लेकिन मुझे पता नहीं क्यों यह लगता है कि सुधी पाठक कहीं अधिक जागरूक होते हैं। पता नहीं ऐसा है या नहीं? हो सकता है कि यह सिर्फ जल और पानी जैसा भेद हो, लेकिन यहां मुद्दा सुधी बनाम जागरूक नहीं, बल्कि एक सुधी (आप चाहें तो जागरूक ही कहें) पाठक से परिचित कराने का है। यह हैं रायबरेली के तिलोई कस्बे के सुरेश चंद्र शर्मा। वह पहले शिक्षक थे। यह तो पता नहीं कि सेवानिवृत्ति के बाद क्या करते हैं, लेकिन वह जिस चाव से अखबार पढ़ते हैं उससे लगता है कि अब उनके पास यही एक काम बचा है।
वह अखबार इतनी बारीकी से पढ़ते हैं कि उनके पास हर दिन कुछ न कुछ कहने के लिए होता है। वह ऐसे इलाके में रहते हैं जहां कानपुर संस्करण भी पहुंचता है और लखनऊ संस्करण भी। यदि कानपुर संस्करण उनकी जिज्ञासा शांत नहीं कर पाता तो वह लखनऊ एडीशन तलाशते हैं और जब उससे भी उनकी जिज्ञासा शांत नहीं होती तो वह शिकायती लहजे में मुझे फोन करते हैं। आम तौर पर वह हर १०-१५ दिन में फोन करते हैं और हमेशा किसी न किसी सुझाव या शिकायत से लैस रहते हैं। जैसे, यह खबर इतनी छोटी क्यों है? क्या यह खबर वाकई सही है? ..और किसी अखबार में तो यह खबर है नहीं? रेडियो-टीवी पर अमुक खबर थी, लेकिन आपके अखबार में नहीं है? कल यह खबर तो छपी नहीं थी, लेकिन आज उस पर संपादकीय लिखा गया है- ऐसा क्यों? डाक एडीशन वालों को कम खबरें क्यों मिलती हैं?. यह कैसा प्रजातंत्र है? क्या मनमोहन सिंह महंगाई रोक पाएंगे? क्या आप लोग जो लिखते हैं उसे नेता लोग नहीं पढ़ते? क्या सब ससुरे बेशर्म हो गए हैं? आज के संपादकीय में सरकार की तारीफ की गई है, लेकिन ऐसा कुछ तो उसने किया नहीं है?.. ऐसे ही न जाने कितने सवाल उनके पास होते हैं।
खास बात यह है कि वह संपादकीय पेज के भी सुधी पाठक हैं। इससे भी खास बात यह है कि वह संपादकीय यानी अग्रलेख भी पढ़ते हैं। अग्रलेख न पढ़ने या कभी-कभार पढ़े जाने के इस जमाने में जो शख्स प्रतिदिन उसे पढ़े उसको तो मैं परम सुधी पाठक ही मानूंगा। वह अग्रलेख से कभी सहमत होते हैं और कभी नहीं, लेकिन हम दोनों इससे हमेशा सहमत रहते हैं कि यह देश चलाना मनमोहन सिंह के बस की बात नहीं। मुझे लगता है कि आप को भी इससे सहमत होना चाहिए। दुविधा में पड़ गए हैं तो रहने दीजिए….और आगे पढि़ए।
शर्मा जी पता नहीं कबसे जागरण के सुधी पाठक है, लेकिन मुझे याद है कि जब जागरण ने अपना आकार घटाया था तब उनका गुस्से से भरा फोन आया था। यह शायद २००२ की बात है। वह कह रहे थे कि आज से आप लोगों ने अखबार पतला कर दिया है और ऐसा करने के पीछे यह लिखा है कि पाठकों की ऐसी ही चाहत थी। क्या मुझे ऐसे किसी पाठक का नाम-पता देंगे जिसने यह कहा हो कि अखबार अधिक चौड़ा है, इसे छोटा कर दें।
मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था, लेकिन इसके बाद से वह मेरे लिए सुधी पाठक बन गए और अभी तक बने हुए हैं। अभी भी कई बार उनके सवालों का कोई जवाब नहीं होता, लेकिन वह अपना सुधीपन दिखाते हुए फोन करते रहते हैं। कभी-कभी नाराज भी हो जाते हैं। उनका ताजा फोन इस बारे में था कि हरदोई रोड पर स्थित आकाशवाणी के टावर में जब बिजली चली जाती है तो उनके इलाके में रेडियो बंद हो जाते हैं और जब सोनिया गांधी के इलाके में यह हाल है तो हम कैसे मान लें कि वह देश की सबसे ताकतवर महिला हैं?
हम अखबार वालों को ऐसे सुधी पाठकों की तलाश करनी चाहिए, लेकिन शायद तलाश करने से वे मिलने वाले नहीं। वे तो यूं ही कभी फोन पर टकरा जाते हैं या किसी चिट्ठी की शक्ल में अवतरित हो जाते हैं। अब वे मेल के जरिये भी प्रकट हो सकते हैं। प्रकट हो जाएं तो सहेज लीजिएगा।

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